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महिला विश्व कप फाइनल हाइलाइट्स: भारत बना नया विश्व चैंपियन; हरमनप्रीत कौर और स्मृति मंधाना भावनाओं से अभिभूत

Sourcehttps://www.cricbuzz.com/cricket-news/136189/felt-we-could-win-from-the-first-ball-itself-harmanpreet-kaur

पहली ही गेंद से लगा था कि हम ये मैच जीत सकते हैं: हरमनप्रीत कौर

आधी रात के बाद जब डी.वाई. पाटिल स्टेडियम का माहौल अपने चरम पर था, तो जो दृश्य सबसे ज़्यादा भावुक कर देने वाला था, वह था हरमनप्रीत कौर और स्मृति मंधाना का मैदान के बीच एक-दूसरे को गले लगाना। कप्तान और उपकप्तान – भारतीय महिला क्रिकेट की दो मज़बूत स्तंभ – जिन्होंने वर्षों तक हार और निराशा का बोझ उठाया, आखिरकार उस मुकाम पर पहुंच गईं, जिसका वे इतने सालों से पीछा कर रही थीं।

हरमनप्रीत ने बाद में कहा,

“मैंने उसके (स्मृति) साथ कई वर्ल्ड कप खेले हैं। हर बार जब हम हारते थे, तो घर लौटकर कुछ दिनों तक चुप रहते थे। फिर वापसी पर हमेशा कहते थे – ‘हमें फिर से पहले गेंद से शुरुआत करनी है।’ बहुत तकलीफ़ होती थी क्योंकि हम कई बार फाइनल, सेमीफाइनल तक पहुंचे, लेकिन जीत नहीं पाए। हमेशा यही सोचते थे कि आखिर कब ये सिलसिला टूटेगा।”

वह सिलसिला इस रात टूटा – जब भारत का विश्वास एक पल के लिए भी नहीं डगमगाया, भले ही टीम ने फिर से टॉस गंवा दिया और बारिश के कारण दो घंटे देरी से शुरू हुए मैच में पहले बल्लेबाज़ी करने भेजी गई।

हरमनप्रीत बोलीं,

“पहली ही गेंद से लगा था कि हम ये मैच जीत सकते हैं। पिछले तीन मैचों में हमारी टीम का आत्मविश्वास अलग ही स्तर पर था। हमें पता था कि हम टीम के रूप में क्या कर सकते हैं। टॉस हारना हमारे लिए मायने नहीं रखता था। हमें पता था कि बल्लेबाज़ी मुश्किल होगी, लेकिन स्मृति और शैफाली को श्रेय जाता है, जिन्होंने पहले 10 ओवर बहुत शानदार खेले।”

यह शांति और आत्मविश्वास आसानी से नहीं आया – यह महीनों की निराशा और आत्मसंयम से गढ़ा गया था। इस घरेलू विश्व कप में, जहाँ भारत को ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरा दावेदार माना जा रहा था, टीम लीग चरण में लगातार तीन मैच हारने के बाद भी मज़बूती से उभरी।

हरमनप्रीत ने कहा,

“पिछला महीना बहुत दिलचस्प रहा। कई बार चीज़ें आपके हिसाब से नहीं होतीं, फिर भी आपको सकारात्मक रहना पड़ता है। इंग्लैंड से हारने के बाद हम सब बहुत टूट गए थे। उस रात सर (कोच अमोल मजूमदार) ने कहा – ‘तुम बार-बार वही गलती नहीं दोहरा सकते, तुम्हें उस रेखा को पार करना ही होगा।’ उसके बाद से बहुत कुछ बदल गया। हमने विज़ुअलाइज़ेशन और मेडिटेशन शुरू किया। सभी ने इसे गंभीरता से लिया और इसका असर दिखा – हमने समझ लिया था कि हम यहाँ कुछ बड़ा करने आए हैं।”

जिस “सर” का उन्होंने ज़िक्र किया, वे थे अमोल मजूमदार, जिनकी शांत कोचिंग ने टीम को स्थिरता दी।

“पिछले ढाई साल में उनका योगदान अद्भुत रहा है। उनसे पहले कोच बार-बार बदल रहे थे, हमें समझ नहीं आ रहा था कि चीज़ों को आगे कैसे बढ़ाया जाए। लेकिन उनके आने के बाद सब कुछ संतुलित और सहज हो गया। इस टीम के निर्माण का बहुत सारा श्रेय उन्हें जाता है।”

मैदान पर दीप्ति शर्मा और शैफाली वर्मा भारत की जीत की दो सबसे बड़ी ताकत बनीं – दीप्ति ने पांच विकेट लिए और शैफाली ने शानदार 87 रन बनाते हुए दो विकेट भी झटके। वह टीम में सेमीफाइनल से पहले प्रतीका रावल की चोट के कारण शामिल हुई थीं।

हरमनप्रीत बोलीं,

“मुझे किस्मत पर बहुत भरोसा है। जब प्रतीका घायल हुईं, तो सभी रो रहे थे। इससे पहले जब यास्तिका (भाटिया) चोटिल हुईं, तब भी टीम भावुक थी। ये टीम बहुत खास है – सब एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, एक-दूसरे का साथ देते हैं। जब शैफाली आई, तो हमने उसे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह किसी की जगह आई है। प्रतीका भी बहुत सकारात्मक थी। सभी ने चीज़ों को अच्छे दृष्टिकोण से देखा।”

फाइनल की रात जब दक्षिण अफ्रीका की पारी लॉरा वुल्वार्ड्ट के एक और शतक की बदौलत ख़तरनाक रूप से आगे बढ़ रही थी, तब कप्तान का संदेश साफ था:

“मैं सिर्फ यही कह रही थी – विश्वास बनाए रखो। हमने इसके लिए बहुत मेहनत की है। मौके आएंगे और हमें उन्हें भुनाना होगा। वनडे क्रिकेट लंबा होता है – आपको बार-बार अलग-अलग चरणों से गुजरना पड़ता है। हमें बस 10 अच्छी गेंदें और 10 विकेट चाहिए थे, और वही हुआ।”

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने उन महिलाओं के बारे में सोचा जिन्होंने उनसे पहले यह रास्ता बनाया, तो उनका जवाब भावनाओं से भरा था:

“झूलन दी (झूलन गोस्वामी) मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं। जब मैं टीम में आई, वे कप्तान थीं। उन्होंने मेरे शुरुआती दिनों में बहुत साथ दिया। शुरुआत में अंजुम (चोपड़ा) दी ने भी बहुत सहयोग किया। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा और वही आगे अपनी टीम के साथ साझा किया। मैं आभारी हूं कि मुझे उनके साथ ये पल साझा करने का मौका मिला।”

और आखिर में, हरमनप्रीत जानती थीं कि यह जीत भारत के लिए क्या मायने रखती है:

“हम इस पल का बहुत समय से इंतज़ार कर रहे थे। हम अच्छा क्रिकेट खेल रहे थे, लेकिन हमें एक बड़ी ट्रॉफी जीतनी थी। उसके बिना बदलाव की बात अधूरी रहती। जब पता चला कि फाइनल का स्थल डी.वाई. पाटिल स्टेडियम होगा, तो हम सब बहुत खुश हुए – हमें हमेशा वहां अच्छा खेलना पसंद है। सबसे बड़ी बात वहां की भीड़ है, जो हमेशा हमारा साथ देती है। हमने ग्रुप में मैसेज किया – ‘अब फाइनल यहीं है, और इसे छोड़ेंगे नहीं।’ मुंबई पहुंचते ही हमने कहा – ‘अब हम घर आ गए हैं, और नई शुरुआत करेंगे।’ हमने पिछली हारों को पीछे छोड़ दिया। नया वर्ल्ड कप अब शुरू हुआ है।”

और अब, आखिरकार – वह जीत हासिल हो गई है।

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