Bazaarekahani

हर दिन की ख़बरें और कहानियाँ, एक जगह पर

विचारों, किस्सों और खबरों के इस डिजिटल बाज़ार में — Bazaarekhani लाता है आपके लिए ताज़ा समाचार, दिल छू लेने वाली कहानियाँ, और आपकी अपनी रचनात्मक आवाज़।

रामपुरा की रहस्यमयी दास्तान

  • गाँव और पात्रों की झलक

बुंदेलखंड की पथरीली धरती पर बसा था एक छोटा-सा गाँव—रामपुरा। चारों ओर खेत-खलिहान, बीच में तालाब, और किनारे-किनारे पगडंडियाँ जो जंगलों की तरफ़ चली जाती थीं। यह गाँव देखने में शांत लगता था, लेकिन इसके बारे में तरह-तरह की अफ़वाहें फैली हुई थीं। गाँव वाले मानते थे कि बरसात की रातों में तालब के पास अजीब घटनाएँ घटती हैं।

इस गाँव में रहते थे रवि और सुजाता, जिनकी शादी को अभी केवल छह महीने हुए थे। रवि गाँव का सीधा-सादा नौजवान था – मजबूत कद-काठी वाला, लेकिन दिल से भोला। वहीं सुजाता पढ़ी-लिखी और जिज्ञासु स्वभाव की थी। गाँव की औरतों के कामों में हाथ बँटाती, पर साथ ही किताबें पढ़ने का भी शौक रखती थी। शादी के बाद से उनकी ज़िंदगी सामान्य थी। सुबह खेतों में काम, शाम को तालाब के किनारे बैठकर बातें करना, और रात को चौपाल पर गाँववालों के किस्से सुनना। लेकिन यह सादगी ज़्यादा दिनों तक कायम नहीं रहनी थी।

एक दिन अचानक बादल छा गए। शाम तक आसमान काला हो गया और रात होते-होते बिजली गरजने लगी। गाँव में लोग जल्दी-जल्दी अपने दरवाज़े बंद करके भीतर घुस गए। रवि और सुजाता भी अपने छोटे-से मिट्टी के घर में बैठे थे। बाहर तूफ़ान था और खिड़की से तेज़ हवा घुस रही थी। तभी सुजाता ने देखा तालाब की तरफ़ एक परछाईं भाग रही है।

“रवि! देखो उधर… कोई भागा है,” सुजाता ने घबराकर कहा।

रवि ने खिड़की से झाँका। “अरे, हो सकता है कोई जानवर हो।”

“नहीं… ये इंसान था।”

दोनों को अचानक तालाब के पास से एक अजीब-सी कराहने की आवाज़ सुनाई दी।

  • तालाब के किनारे का राज़

जिज्ञासा और डर के बीच उलझते हुए भी रवि ने लालटेन उठाई और कहा – “चलो देखते हैं।”

सुजाता ने पहले मना किया, पर फिर उसका दिल भी मान गया। दोनों बारिश में भीगते हुए तालाब की तरफ़ गए। पानी की बूंदें उनकी लालटेन पर पड़ रही थीं, और चारों ओर सन्नाटा था। तालाब के किनारे उन्हें लाल कपड़े का टुकड़ा मिला, जिस पर ताज़ा खून के धब्बे थे।

सुजाता की आँखें फैल गईं। “ये… ये क्या है?”

रवि ने मिट्टी खोदकर देखा तो अंदर से लोहे का संदूक निकला। भारी-भरकम, ताले लगे हुए और ऊपर अजीब-सी आकृतियाँ खुदी हुईं।

“ये यहाँ कैसे आया?” रवि ने कहा।

जैसे ही उन्होंने संदूक उठाया, पीछे से तेज़ कदमों की आहट सुनाई दी। कोई भारी आवाज़ गूँजी—

“संदूक वहीं छोड़ दो! ये तुम्हारा नहीं है।”

रवि ने तुरंत सुजाता का हाथ पकड़ा और दोनों दौड़ पड़े। गाँव की सँकरी गलियों में अंधेरे में ठोकरें खाते हुए वे किसी तरह अपने घर पहुँचे और दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया। दरवाज़े पर किसी ने ज़ोर से चोट की, लेकिन फिर सब शांत हो गया। सुजाता काँप रही थी। “रवि, ये सब क्या हो रहा है? कौन था वो?” रवि ने भी डर छिपाते हुए कहा—”मुझे नहीं पता। लेकिन इस संदूक में कुछ बड़ा राज़ है।”

  • गाँव के बुज़ुर्ग की बात

सुबह होते ही रवि ने गाँव के सबसे बुज़ुर्ग दादू को बुलाया। दादू पूरे गाँव में अपने अनुभव और किस्सों के लिए मशहूर थे।

संदूक देखते ही दादू की साँस अटक गई।

“हे भगवान! ये तो वही है… वही डकैतों का ख़ज़ाना…”

रवि और सुजाता ने चौंककर पूछा – “डकैतों का ख़ज़ाना?”

दादू ने धीमी आवाज़ में बताया – “सौ साल पहले यहाँ डकैतों का गिरोह रहता था। कहते हैं उन्होंने इसी तालाब के पास कई लोगों की बलि दी और अपना ख़ज़ाना यहीं गाड़ा। बाद में अंग्रेज़ी फौज ने उन्हें मार गिराया, लेकिन ख़ज़ाने का रहस्य कभी सुलझा नहीं। लोग मानते हैं कि इस ख़ज़ाने पर श्राप है।” सुजाता की आँखों में डर और उत्सुकता दोनों थे।

“तो क्या ये वही ख़ज़ाना है?”

दादू बोले—”नहीं बेटी, असली ख़ज़ाना शायद अभी भी कहीं छिपा है। ये संदूक तो बस उसकी कुंजी हो सकता है।” रात को रवि और सुजाता ने हिम्मत करके संदूक खोला। ताले तोड़ने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन जब अंदर झाँका तो वहाँ सोना-चाँदी नहीं, बल्कि कुछ पुरानी चिट्ठियाँ और एक नक्शा था।

चिट्ठी में लिखा था – “सच्चा ख़ज़ाना अब भी इस गाँव की धरती में छिपा है। पर जो इसे पाएगा, उसे मौत की छाया से गुज़रना होगा।” रवि और सुजाता की आँखों में चमक आ गई। “तो ये बस शुरुआत है,” रवि ने कहा।

  • नक्शे की रहस्यमयी राह

नक्शे में तालाब, जंगल और पहाड़ी के पास एक गुफ़ा का निशान बना था।

सुजाता ने नक्शा देखते हुए कहा

“ये तो उस पुराने पीपल के पेड़ के पास का इलाका लगता है।” रवि बोला—”हाँ, लेकिन उधर तो गाँव वाले रात में जाने से डरते हैं। कहते हैं वहाँ भूत है।” दोनों ने तय किया कि अगले दिन सुबह वहाँ जाएंगे।

अगली सुबह, लालटेन और डंडा लेकर दोनों पीपल के पेड़ की तरफ़ बढ़े। पेड़ बहुत विशाल था, उसकी जड़ों में अँधेरा पसरा हुआ था। वहीं पास में मिट्टी के ढेर के नीचे एक छोटी गुफ़ा का मुँह मिला। जैसे ही वे अंदर गए, हवा ठंडी हो गई और अंधेरा गहराने लगा। दीवारों पर पुराने समय की नक्काशियाँ बनी थीं—घोड़ों, तलवारों और डकैतों की आकृतियाँ।

अचानक पीछे से वही भारी आवाज़ गूँजी—

“वहीं रुक जाओ!” रवि और सुजाता ने पीछे मुड़कर देखा—चार नकाबपोश लोग खड़े थे, हाथों में धारदार हथियार लिए।

  • साज़िश का पर्दाफ़ाश

नकाबपोशों ने कहा ये नक्शा हमें दो। ये हमारा है।” रवि ने हिम्मत जुटाकर पूछा “तुम लोग कौन हो?”

एक नकाबपोश बोला – “हम उन्हीं डकैतों की संतान हैं। ये ख़ज़ाना हमारा हक़ है।”

लेकिन सुजाता ने चालाकी से कहा “तो आओ, हम सब मिलकर इसे खोजते हैं। लेकिन याद रखो, नक्शा हमारे पास है।” उन नकाबपोशों ने मजबूरी में हामी भर दी। गुफ़ा के अंदर कई रास्ते थे। नक्शे की मदद से सब एक संकरी सुरंग से गुज़रे। वहाँ उन्हें एक विशाल कक्ष मिला। बीच में पत्थर का तख़्त रखा था, जिस पर एक और संदूक रखा था। नकाबपोशों ने जैसे ही संदूक उठाने की कोशिश की, अचानक ज़मीन हिली और ऊपर से पत्थर गिरने लगे।

रवि ने सुजाता का हाथ पकड़कर बाहर की ओर खींचा।

लेकिन नकाबपोश फँस गए। उनकी चीखें गुफ़ा में गूँजती रह गईं।

  • ख़ज़ाने का सच

जब धूल छँटी, रवि और सुजाता ने संदूक खोला। उसमें सोने-चाँदी के सिक्के, हीरे-जवाहरात और कुछ हथियार थे।

सुजाता बोली “इतना सब.. ये तो पूरा गाँव बदल सकता है।”

रवि ने गंभीर होकर कहा “हाँ, लेकिन इसे अकेले रखना मौत को न्योता देने जैसा है। हमें इसे गाँववालों की भलाई के लिए इस्तेमाल करना होगा।”

नई ज़िंदगी, नया रोमांच, ख़ज़ाना गाँववालों में बाँट दिया गया। स्कूल, कुएँ और सड़कें बनवाई गईं।

लेकिन रवि और सुजाता जानते थे कि असली रोमांच अभी शुरू हुआ है। क्योंकि नक्शे में एक और निशान बना था जंगल की गहराई में, जहाँ अब तक कोई नहीं गया था।

और चिट्ठी की आख़िरी पंक्ति उनकी आँखों के सामने गूँज रही थी: “जो सच्चे दिल से गाँव की रक्षा करेगा, वही अंतिम रहस्य पाएगा।”

रामपुरा अब खुशहाल था, पर रवि और सुजाता की ज़िंदगी रोमांचक और थ्रिलर से भर चुकी थी।

हर रात, वे उस नक्शे को देखते और सोचते – अगला रहस्य उन्हें कहाँ ले जाएगा?