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अनकहे इशारे और भीनी-भीनी रातें

  • गाँव की सुबह और पहला आकर्षण

गाँव की सुबह का रंग ही कुछ और होता है। चारों तरफ़ फैली हरियाली, हल्की-हल्की धुंध और हवा में मिट्टी की गंध – मानो प्रकृति खुद किसी गीत की धुन छेड़ रही हो। सरसों के खेतों की पीली चमक सूरज की पहली किरण के साथ और भी सुनहरी हो उठती थी। पगडंडियों पर ओस से भीगी घास पर चलते समय जैसे कोई नन्ही-सी घंटियाँ बज रही हों। इसी वातावरण में अर्जुन अपने खेत से लौटता था, और लौटते ही उसकी नज़र सबसे पहले आँगन में काम करती अपनी पत्नी गीता पर पड़ती। गीता हर रोज़ की तरह झाड़ू लगाकर आँगन को सींचती, मिट्टी से उठती ठंडी-सी महक पूरे घर को भिगो देती। उसकी साड़ी का पल्लू हवा के साथ लहराता और सूरज की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ती तो उसका चेहरा किसी नए खिले फूल जैसा दमक उठता। अर्जुन की थकी हुई देह जैसे उस एक दृश्य को देखकर ही ताज़ा हो जाती

गीता जानती थी कि उसका पति उसे देख रहा है, मगर वह सीधे उसकी ओर देखने के बजाय हल्की मुस्कान के साथ पल्लू सँभाल लेती। कभी-कभी उसके गालों पर आ जाती लालिमा अर्जुन के दिल की धड़कनों को और तेज़ कर देती। यह रोज़ की सुबह का दृश्य था, मगर अर्जुन के लिए यह कभी पुराना नहीं हुआ। उसके लिए हर दिन गीता को देखना नया था, अलग था और उतना ही मोहक जितना उनके पहले मिलन का दिन।

  • अनकही बातें और इशारे

गाँव की ज़िंदगी सरल जरूर थी, मगर दिनभर की व्यस्तता पति-पत्नी को खुलकर बैठने का समय नहीं देती। खेत का काम, घर का बोझ और आस-पड़ोस की आवाजाही – सबके बीच उनके रिश्ते का रंग छिपा रहता। मगर यह छिपाव ही उनके लिए आकर्षण का कारण बन जाता। जब गीता अपनी सहेलियों के साथ कुएँ पर पानी भरने जाती, तो अर्जुन खेत से लौटते हुए दूर से ही उसकी झलक ढूँढ़ लेता। भीड़ में भी उसकी आँखें केवल गीता को ही पहचान लेतीं। गीता जब मटकी उठाती और उसकी चूड़ियाँ छनकतीं, तो अर्जुन को लगता जैसे वह आवाज़ सिर्फ़ उसी के लिए है। कभी पायल की झंकार गूँजती, कभी उसके गीले बालों से टपकती बूँदें उसकी गर्दन को भिगो देतीं। अर्जुन उन पलों को निहारते हुए भूल जाता कि वह खेतों की थकान लेकर लौट रहा है।

गीता भी अर्जुन की निगाहों को महसूस करती थी। वह पल्लू से चेहरा ढकने का नाटक करती, मगर उसकी आँखों की कोरों से झाँकती शरारत अर्जुन का दिल जीत लेती। कई बार अर्जुन चाहता कि जाकर उसका हाथ थाम ले, मगर गाँव की रीत और लोगों की निगाहें उन्हें रोक देतीं। यही अनकहे इशारे उनके रिश्ते को और गहराते थे। शब्द कम थे, मगर भावनाएँ बहुत गहरी थीं। गीता का पल्लू सँभालना, अर्जुन की चुपचाप मुस्कराहट और आँखों से किए गए संवाद यही उनका प्रेम था

  • संध्या का मिलन

जब सूरज ढल जाता और गाँव का शोर थम जाता, तब दोनों को कुछ पल अकेले मिलते। आँगन में दीपक जलाने का काम गीता का था। वह पीतल के दीये में सरसों का तेल भरकर बाती जलाती और चौकी पर रख देती। उसी रोशनी में उसका चेहरा सुनहरी आभा से चमक उठता। अर्जुन, जो दिनभर की थकान के बाद आराम करने बैठता, चुपके से उसके पास आ जाता। वह कोई बड़ी बात नहीं करता, बस उसके पास बैठ जाना ही उसे सुकून देता। कभी अर्जुन उसके हाथों को छू लेता, तो गीता हल्की झिड़की देती, “अरे कोई देख लेगा ” मगर उसकी मुस्कान बता देती कि वह इस स्पर्श को नकारना नहीं चाहती। अर्जुन मुस्कुराकर कह देता, “तुम्हारी हँसी ही मेरी सबसे बड़ी जीत है।

इन संध्याओं में दोनों की नज़दीकियाँ धीरे-धीरे गहराती गईं। गीता की आँखें अर्जुन के लिए कविता बन जातीं, और अर्जुन की चुप्पी गीता के लिए संगीत। दोनों के बीच कोई भारी संवाद नहीं होता था, मगर दिल की बातें आँखें कह जातीं। हर शाम उनके लिए जैसे नया वादा होती – एक दूसरे को हर हाल में सँभालने का साथ निभाने का

  • बारिश और चुपके पल

गाँव की एक शाम अचानक बदल गई जब काले बादल घिर आए। देखते ही देखते मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। गीता कपड़े समेटने आँगन में दौड़ी, अर्जुन भी उसके पीछे-पीछे चला आया। दोनों भीग गए। बारिश की बूँदें उनके चारों ओर संगीत बना रही थीं। गीता की साड़ी उसके शरीर से चिपक गई, और उसके चेहरे पर भीगी लटें बार-बार आ रही थीं। अर्जुन ने हँसते हुए कहा, “लगता है बादलों ने भी तुम्हें सजाने की ठानी है।” गीता ने झेंपकर उसकी ओर देखा, और उस नज़र में जितना प्रेम और आकर्षण था, उतना किसी लंबे संवाद में भी नहीं हो सकता था।

दोनों कुछ पल बिना बोले खड़े रहे, मानो समय थम गया हो। गीता का मन कह रहा था कि वह इस पल को सहेज ले, और अर्जुन चाहता था कि यह पल कभी ख़त्म न हो। बारिश की बूँदों ने उनके बीच की दूरी मिटा दी। गीता ने हल्की मुस्कान के साथ पल्लू सँभाला, मगर उसकी आँखें साफ़ बता रही थी कि उसका दिल अर्जुन के ही नाम है।

  • सादगी में बसा प्रेम

अर्जुन और गीता की कहानी किसी बड़े क़िस्से की तरह नहीं थी। इसमें न कोई बड़ी नाटकीयता थी, न ही बड़े वादे। यह कहानी थी सादगी की, छोटे-छोटे इशारों की और उन अनकहे पलों की, जो दिल में हमेशा बस जाते हैं। खेतों की पगडंडी पर चलते हुए अर्जुन का चुपके से गीता का हाथ थाम लेना, आँगन में दीपक जलाते समय मुस्कान बाँटना, या बारिश में भीगते हुए एक-दूसरे को निहारना यही उनका प्रेम था। यह प्रेम इतना सच्चा था कि किसी गवाह की ज़रूरत नहीं थी।

गाँव के लोग अक्सर कहते थे, “अर्जुन और गीता तो सचमुच राम-सीता की जोड़ी हैं।” दोनों ने अपने रिश्ते को कभी बड़े शब्दों में नहीं बाँधा, बल्कि अपने व्यवहार, अपनापन और छोटी-छोटी शरारतों से उसे जिया। उनके जीवन में शायद शहरी चकाचौंध नहीं थी, मगर जो आकर्षण और मोहकता उनके रिश्ते में थी, वही उनकी सबसे बड़ी पूँजी थी। यही सादगी उनके प्रेम को अमर बनाती थी।