Bazaarekahani

हर दिन की ख़बरें और कहानियाँ, एक जगह पर

विचारों, किस्सों और खबरों के इस डिजिटल बाज़ार में — Bazaarekhani लाता है आपके लिए ताज़ा समाचार, दिल छू लेने वाली कहानियाँ, और आपकी अपनी रचनात्मक आवाज़।

गाँव की पगडंडी पर

बरसात की सुबह और पहली झलक

बरसात के बाद की सुबह गाँव हमेशा किसी गीत की तरह लगती थी। खेतों पर जमी नमी, पगडंडियों पर बहती छोटी-छोटी धाराएँ और तालाब के किनारे खिले कमल मानो जीवन की ताजगी का संदेश देते थे। अभय कई महीनों बाद शहर से गाँव लौटा था। पढ़ाई और भागदौड़ में डूबा हुआ जीवन छोड़कर जब उसने गाँव की खुली हवा में साँस ली, तो उसे लगा जैसे शरीर ही नहीं, आत्मा भी हल्की हो गई है मगर यह हल्कापन तब भारी-सा हो उठा जब उसकी नज़र सुधा पर पड़ी। सुधा, वही लड़की, जिसके साथ उसने बचपन के पेड़-पौधों, खेलों और मेले की यादें बाँटी थीं। पर अब वह पहले जैसी नहीं रही। सिर पर घड़ा उठाए, पायल की छनक से गूँजती पगडंडी पर चलते हुए उसकी चाल में एक अनकहा आकर्षण था, जिसकी ओर अभय की आँखें बँधकर रह गईं। हवा में उड़ती उसकी चुन्नी, माथे पर ढलती धूप और झुकी हुई पलकें अभय के भीतर एक ऐसी हलचल पैदा कर रही थीं जिसे वह समझते हुए भी अनदेखा नहीं कर पा रहा था। सुधा ने उसे देखा, तो पल भर के लिए मुस्कुराई, पर वह मुस्कान साधारण नहीं थी। उसमें संकोच और अपनापन दोनों का मिलाजुला रंग था, जो अभय के मन को गहराई से छू गया। उसे लगा कि गाँव के हर कोने में हर गली और हर छाँव में अब सुधा ही बसी है।

  • मेले की भीड़ और बढ़ता आकर्षण

दिन बीतने लगे और हर दिन किसी बहाने अभय और सुधा की राहें मिलती रहीं। कभी तालाब के किनारे, जहाँ सुधा पानी भर रही होती, और उसकी उँगलियों से टपकते बूंदों पर सूरज चमकता, तो कभी खेत की मेड़ों पर चलते हुए, जहाँ उसकी चूड़ियों की खनक हवा में किसी अनकहे गीत-सी गूँजती। अभय के लिए यह सब जैसे किसी जादू से कम न था। वह चाहता तो था कि सुधा से अपने दिल की बात कह दे, पर उसकी नज़रें और मुस्कान ही सब कह देती थीं। सुधा भी अब पहले जैसी बेपरवाह न रही थी। उसकी आँखें जब-जब अभय से मिलतीं, उनमें कोई अनकहा स्वीकार छुपा होता। सावन का मेला आया तो यह आकर्षण और गहरा हो गया। मेले की भीड़ में, गीतों की धुन और झूलों की आवाज़ के बीच अचानक भीड़ का धक्का लगा और सुधा का हाथ अभय के हाथ से छू गया। यह क्षण क्षणभर का था, पर उस स्पर्श ने दोनों की धड़कनों को तेज़ कर दिया। सुधा ने झट से हाथ खींच लिया, पर उसके गालों पर छाई लाली और काँपती हुई साँसें सब कह रही थीं। अभय ने उस पल जाना कि यह रिश्ता अब केवल बचपन की दोस्ती नहीं रहा, बल्कि इसमें चाहत और मादकता की एक नई परत जुड़ चुकी है।

  • नदी किनारे का मौन वादा

एक शाम नदी किनारे की हवा में दोनों फिर अकेले मिले। पानी की लहरें हल्की-हल्की थपकियाँ दे रही थीं और दूर कहीं से कोयल की आवाज़ आ रही थी। अभय ने धीमे स्वर में कहा, “सुधा, जब से लौटा हूँ, लगता है कि इस गाँव की हर खुशबू, हर आवाज़, हर धड़कन तुम्हारा नाम ले रही है।” सुधा ने आँखें झुका लीं, पर उसके होंठों पर हल्की मुस्कान ने उसकी चुप्पी को अर्थपूर्ण बना दिया। अभय ने साहस करके उसकी कलाई पकड़ ली। सुधा काँप गई उसकी साँसें तेज़ हो गईं, पर उसने हाथ नहीं छुड़ाया। यह मौन ही सबसे गहरा संवाद बन गया। उस क्षण में हवा ठहर गई, समय थम गया और केवल दिलों की धड़कनें बोल रही थीं। सुधा के चेहरे पर ढलती चाँदनी पड़ रही थी और उसकी आँखों की चमक अभय के दिल को भीतर तक रोशन कर रही थी। उसकी उँगलियाँ जब सुधा की हथेली से छूकर गुज़रीं, तो सुधा ने हल्के से पलकें बंद कर लीं, मानो उस स्पर्श को हमेशा के लिए सहेज लेना चाहती हो। उस रात दोनों ने कोई वचन नहीं दिया, पर एक अनकहा वादा कर लिया कि चाहे जीवन कहीं भी ले जाए, यह एहसास हमेशा उनके बीच रहेगा।

  • विदाई और अधूरी चाहत

मगर समय की अपनी चाल होती है। छुट्टियाँ पूरी होते ही अभय को वापस शहर लौटना पड़ा। उस आखिरी दिन जब वह पगडंडी पर सुधा से मिलने आया, तो उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत और दर्द की लहर थी। उसने कहा, “सुधा, लौटना ज़रूरी है, पर तुम्हें छोड़कर जाना… यह मन को तोड़ देता है।” सुधा चुप रही, उसकी आँखों से आँसू छलककर आँचल में छुप गए। उसने धीरे से कहा, “यह पगडंडी तुम्हें याद दिलाती रहेगी। जब भी लौटोगे, यहाँ मैं रहूँगी, शायद इसी तरह।” उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर मुस्कान अब भी थी वही मासूम पर गहरी मुस्कान जो अभय के दिल में हमेशा के लिए छप गई। अभय चला गया, पर उसके कदमों की आहट में सुधा की साँसें बँधी रह गईं। बरसात की मिट्टी की खुशबू, नदी की लहरें, पायल की छनक और मेले की भीड़ सब कुछ अब उनके रिश्ते की गवाही देने लगे। गाँव की वही पगडंडी हर बार उस कहानी को जी उठाती, जब भी सुधा वहाँ से गुज़रती। उसके हर मोड़ पर अभय की परछाइयाँ थीं और सुधा का मन उन परछाइयों में डूबकर हर बार वही सुख-दर्द महसूस करता। इस तरह यह रिश्ता पूरा होकर भी अधूरा रहा, और अधूरा होकर भी पूरा क्योंकि उसमें चाहत की गहराई, संकोच की मिठास और स्पर्श की मादकता सब कुछ समाया था।