कभी-कभी कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी रहकर ही अमर हो जाती हैं। मीरा और अयान की तरह। जहाँ एक मोहब्बत चिट्ठी में छुपी थी, और दूसरी… एक अधूरी मुलाक़ात में।

बनारस की तंग गलियों में मोहब्बत अक्सर खामोशी से पनपती है। मंदिर की घंटियों के बीच, गंगा की लहरों के किनारे, और पान की दुकानों पर अटके अधूरे वाक्यों में।
अयान, एक नवोदित लेखक, जो लखनऊ से बनारस अपने नाना के पुराने हवेली में रहने आया था। वहाँ उसका मकसद था—अपनी पहली किताब को खत्म करना। लेकिन किताब से ज़्यादा, उसका ध्यान एक और चीज़ ने खींच लिया—हवेली के ठीक सामने वाली खिड़की।
हर शाम 5 बजे, उस खिड़की से सफ़ेद दुपट्टे में एक लड़की झाँकती थी। बड़ी-बड़ी आँखें, सादा चेहरा, मगर उनमें एक अजीब सी गहराई। उसका नाम था—मीरा।
पहली मुलाकात:
एक दिन बिजली चली गई। बनारस की गर्मी और ऊपर से मच्छरों की भरमार। अयान छत पर गया, और वहीं मीरा भी अपनी छत पर बैठी थी। अयान ने मुस्कराते हुए कहा,
लगता है, किताबों से ज़्यादा अब आपको देखने की आदत हो रही है।
मीरा ने हैरान होकर देखा, फिर मुस्करा दी, आप लेखक हो ना? रोज़ आपको बालकनी में कुछ लिखते देखती हूँ।
उस दिन पहली बार बात हुई। और बातों का सिलसिला ऐसा चला कि हर शाम उनका मिलना तय हो गया।
मीरा ज़्यादा बोलती नहीं थी, लेकिन जब बोलती तो शब्द सीधे दिल तक उतरते।
राज़ की पहली परत:
कुछ दिन बाद, अयान ने देखा कि मीरा हर बार एक ही सफ़ेद सूट में आती है। वो न पान खाती थी, न कभी चाय, न कभी बाजार जाती। उसके बारे में कोई बात करता तो चुप हो जाता।
एक दिन, अयान ने उसके बारे में पड़ोस की एक बूढ़ी अम्मा से पूछा।
अम्मा ने लंबी सांस लेकर कहा,
बेटा, मीरा तो पाँच साल पहले… ख़ैर, तू छोड़ दे। मोहब्बत में इन गलियों ने बहुत कुछ देखा है।
अयान चौंक गया। पाँच साल पहले?
सच्चाई का पीछा:
अयान की जिज्ञासा बढ़ने लगी। उसने पुराने मोहल्ले वालों से पूछताछ की। पता चला, मीरा इसी हवेली में रहती थी। पाँच साल पहले उसकी शादी तय हुई थी एक बड़े व्यापारी से, मगर शादी से एक दिन पहले उसकी लाश गंगा घाट के पास मिली।
खुदकुशी थी या मर्डर, कोई नहीं जानता। यह जवाब उसे हर तरफ से मिला।
लेकिन सवाल ये था: जो लड़की हर शाम उसकी छत पर बैठती है, वो कौन है?
चिट्ठी का रहस्य:
हवेली के तहखाने में अयान को एक पुराना संदूक मिला, जिसमें काग़ज़ों के बीच एक चिट्ठी थी। उस पर लिखा था:
प्रिय अयान,
अगर ये चिट्ठी तुम तक पहुँचे, तो समझना कि मैं हमेशा से तुमसे मोहब्बत करती थी। मगर मेरे पास हिम्मत नहीं थी तुम्हें बताने की। मैं जानती हूँ, समाज, जात-पात, परिवार—ये सब हमारे बीच दीवार बनेंगे। मगर फिर भी, तुम्हारे जाने के बाद मैं हर शाम तुम्हारा इंतज़ार करती रही…
– मीरा
अयान की आँखों में आँसू थे। मगर साथ ही एक सवाल भी—ये चिट्ठी तो मीरा ने लिखी थी, लेकिन अयान को कैसे पता चला, जब वो मीरा को पहले से नहीं जानता था?
अतीत से सामना:
दूसरे दिन, उसने मीरा से मिलने की ठानी। छत पर जाकर बोला,
मीरा, मुझे सब पता चल गया है। तुम कौन हो?
मीरा मुस्कराई, जिससे तुम रोज़ बात करते हो, वो मीरा नहीं… उसकी अधूरी याद है।
तो क्या तुम भूत हो? अयान ने कांपती आवाज़ में पूछा।
नहीं… मोहब्बत हूँ। और मोहब्बत कभी मरती नहीं।
अचानक एक हवा का झोंका आया, और मीरा गायब हो गई। उसकी जगह छत पर एक गुलाब और वही चिट्ठी पड़ी थी, जो अयान ने तहखाने में देखी थी।
अंतिम मोड़:
कुछ दिन बाद, अयान ने बनारस छोड़ दिया। लेकिन उसने एक किताब लिखी—मीरा – वो जो कभी पूरी न हो सकी। किताब सुपरहिट हुई, मगर अयान फिर कभी किसी लड़की से मोहब्बत नहीं कर सका।
वो हर साल गंगा घाट आता है, उसी मंदिर के पास बैठता है, और उस खिड़की की ओर देखता है… जहाँ मीरा बैठा करती थी।
लोग कहते हैं, कभी-कभी वहाँ एक लड़की सफ़ेद सूट में दिखती है, खिड़की से झांकती हुई।